रिश्तों की राजनीति- भाग 25
भाग 25
अगले दिन सान्वी और अक्षय, सिद्धि ताई को बाबा के फ़ैसले के बारे में बताते हैं और उससे जुड़ी शर्त भी। सिद्धि ताई को जयदाद में हिस्सा न देने वाली बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, वो इस बात से खुश होती है कि अब कम से कम बाबा की रजामंदी से उसका विवाह अभिजीत के संग तो हो जाएगा। वो सान्वी और अक्षय को जोर से गले लगाकर शुक्रिया कहती है और अभिजीत से मिलने के लिए घर से निकल जाती है।
अभिजीत और सिद्धि अपने मनपसन्द कैफ़े में बैठे होते हैं।
वो अभिजीत का हाथ पकड़कर कहती है….एक खुशखबरी है.... सान्वी और अक्षय ने बाबा को हमारी शादी के लिए मना लिया है। लेकिन उनकी शर्त है कि शादी सादे ढंग से होगी और भविष्य में जयदाद में मुझे कोई हिस्सा नहीं मिलेगा।
जहाँ एक तरफ शादी की बात सुनकर अभिजीत खुश हो जाता है, वहीँ जयदाद में हिस्सा न मिलने वाली बात उसे अच्छी नहीं लगती। लेकिन वो इस समय इस बात को उठाता नहीं है। वो सिर्फ इतना कहता है कि तुम्हें दुख नहीं है अपने बाबा की जयदाद में हिस्सा न मिलने का?
नहीं, मुझे इस बात की ख़ुशी है कि हम दोनों एक होने जा रहे हैं।
मेरे लिए भी इससे ज़्यादा ख़ुशी की बात कुछ और नहीं है सिद्धि।
लगभग एक महीने बाद सिद्धि और अभिजीत की शादी दोनों परिवारों और मीडिया की मौजूदगी के बीच हो जाती है। अभिजीत अभी तक इतना तो समझ चुका होता है कि जगताप पाटिल जो भी काम करता है वो मीडिया में अपनी छवि बनाने के लिए करता है।
शादी के बाद सिद्धि अभिजीत के घर आ जाती है। पूरी रस्मों के साथ उसका गृह प्रवेश होता है, हाँ लेकिन उतने धूमधाम से नहीं होता, जितना सान्वी का उसके घर में हुआ होता है। अभिजीत के साथ वैवाहिक जीवन की शुरुवात सुखद होती है। वैसे ससुराल में उसे कोई दुख तो नहीं था, लेकिन यह भी सच था कि मायके के ठाठ बाट का सुख यहाँ नहीं था।
राजसी घर में रहकर समाज सेवा की बातें करना आसान था क्योंकि वहाँ कमाने की चिंता नहीं थी , घर में हर सुख-सुविधा पहले से मौजूद थी। मायके में कभी बजट के बारे में नहीं सोचा था, लेकिन ससुराल में बजट बनाये बिना काम ही नहीं चलता था। जितना सम्भव था, सिद्धि उतना एडजस्ट करने की कोशिश कर रही थी।
सिद्धि के जाने के बाद अब घर में पूरी तरह से सान्वी का राज था। घर का हर छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा काम उसकी राय के बिना नहीं होता था। उसका रुतबा घर में पहले से ज्यादा ऊँचा हो गया था क्योंकि अक्षय के नाम के साथ एम एल ए जुड़ गया था। जगताप पाटिल और अक्षय दोनों ही चुनाव जीत गए थे। सान्वी की जिंदगी में सब कुछ अच्छा चल रहा था, अक्षय के चुनाव जीतने के कुछ समय बाद ही सान्वी ने दो जुड़वा बेटों को जन्म दिया। अक्षय और जगताप पाटिल दोनों ही इस बात से बहुत खुश थे। सान्वी ने उनके परिवार को पूरा कर दिया था।
जहाँ एक तरफ सान्वी की गाड़ी रफ़्तार पकड़ चुकी थी, वहीं सिद्धी की गाड़ी घिसट-घिसट कर चल रही थी। अभिजीत को इस बात का एहसास था कि सिद्धि खुश नहीं है, लेकिन वो फिर भी सब नजरअंदाज कर रहा था। फिलहाल उसके हाथ में कुछ नहीं था।
यह बात सच थी कि उसने सिद्धि से शादी पैसे के लिए नहीं की थी। लेकिन जब भी सान्वी के ठाठ बाट देखता, तो वो न चाहते हुए भी अपनी जिंदगी की तुलना उसकी जिंदगी से कर बैठता। यही गलती सिद्धि भी कर रही थी।
अभिजीत को लगा था जैसे सान्वी की जिंदगी बदल गयी थी अक्षय से शादी के बाद, वैसे उसकी जिंदगी भी बदल जायेगी सिद्धि से शादी के बाद, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, वो जहाँ था, वहीं रह गया। बैंक की नौकरी की परीक्षा में दो बार असफल होने के बाद वो निराश हो गया था। इस वजह से उसके मन में सान्वी के प्रति ईर्ष्या के भाव जन्म लेने लगे थे।
दस से बारह घँटे की नौकरी करने के बाद भी वो उतना नहीं कमा पा रहा था कि सिद्धि की सभी जरूरतों को पूरा कर सके। बड़े घर की बेटी थी, तो शौक भी बड़े वाले थे। सारी चीजें ब्रांडेड इस्तेमाल करती थी। उसकी चीजों का ब्रांड मध्यमवर्गीय परिवार वाले लोगों की चीजों से अलग ही था। खैर वो खुद इतना कमा लेती थी कि अपने शौक पूरे कर सके। लेकिन अभिजीत पति होने के नाते कभी-कभी हताश महसूस करता था कि वो अपनी पत्नी को ऐशो आराम वाली जिंदगी नहीं दे पा रहा है।
सिद्धि दिल की अच्छी थी, लेकिन कभी-कभी न चाहते हुए भी उसके चेहरे से पता चल ही जाता था कि उसे यह बजट वाली जिंदगी रास नहीं आ रही है। दोनों ही भीतर ही भीतर कुंठा के शिकार होते जा रहे थे।
वक़्त के साथ-साथ इंसान की सोच भी बदल जाती है, अभिजीत और सिद्धि की भी बदल चुकी थी। कुछ समय बाद अभिजीत की नौकरी छूट जाती है और घर चलाने की सारी जिम्मेदारी सिद्धि के कंधों पर आ जाती है।
शुरुवात में तो जैसे तैसे वो निभाती है लेकिन बाद में इस तरह की संघर्ष वाली जिंदगी से उसे चिढ़ होने लगती है।
एक दिन सिद्धि अभिजीत से कहती है कि वो इस तरह की बजट वाली जिंदगी और नहीं जी सकती। वो चाहती है कि वो दोनों बाबा के घर जाकर रहे।
अभिजीत कहता है कि हमारे इस कदम से उन्हें लगेगा कि हम जयदाद में हिस्सा चाहते हैं।
जिसे जो लगता है लगने दो, वैसे भी शादी के वक़्त मैंने कुछ लिखित में लिखकर नहीं दिया था। जितना अक्षय का हिस्सा है, उतना मेरा भी है।
अभिजीत, मैं इस जिंदगी से थक चुकी हूँ, मैं अब और यहाँ नहीं रहना चाहती। रही तुम्हारे आई बाबा की बात तो अपना अलग घर लेते ही उन्हें बुला लेंगे। तुम्हारा क्या फैसला है, क्या तुम रोज दस से बारह घँटे की नौकरी करते हुए भरी जवानी में बूढ़े हो जाना चाहते हो या फिर आराम की जिंदगी चाहते हो?
जो तुम्हारा फैसला है, वही मेरा फैसला है सिद्धि।
सिद्धि और अभिजीत दोनों अपना सामान लेकर जगताप पाटिल के घर पहुँच जाते हैं। घर जाकर वो अपने बाबा को बताती है कि अभिजीत की नौकरी छूट गयी है और उसे मदद चाहिए।
पिता होने के नाते वो उसे न नहीं कह पाते और अपनी एक फार्मा कम्पनी की देखभाल का जिम्मा सिद्धि और अभिजीत के हाथों में सौंप देते हैं। यह बात सान्वी और अक्षय को नागवार गुजरती है, लेकिन वो कोई भी प्रतिक्रिया देने से पहले चुप रहकर स्थिति को समझने की कोशिश करते हैं।
❤सोनिया जाधव
Raziya bano
14-Oct-2022 08:24 PM
Nice
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Seema Priyadarshini sahay
14-Oct-2022 04:23 PM
बहुत खूबसूरत भाग
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आँचल सोनी 'हिया'
14-Oct-2022 09:35 AM
Achha likha hai 💐
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